हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

हिंदी का गौरव और महत्त्व

🏛️ संवैधानिक मान्यता
14 सितंबर 1949 को हिंदी को राजभाषा का दर्जा मिला। संविधान सभा में हिंदी को भारत की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया।
🌍 वैश्विक पहुंच
हिंदी विश्व की तीसरी सबसे बड़ी भाषा है। लगभग 60 करोड़ लोग हिंदी बोलते और समझते हैं।
📚 साहित्यिक धरोहर
हिंदी साहित्य का इतिहास हजारों साल पुराना है। तुलसीदास, कबीर, रहीम जैसे महान कवियों की भाषा है हिंदी।
🔤 वैज्ञानिक लिपि
देवनागरी लिपि अत्यंत वैज्ञानिक है। जैसा बोला जाता है, वैसा ही लिखा जाता है।
🤝 एकता की भाषा
हिंदी भारत की विविधता में एकता लाने वाली संपर्क भाषा है। यह सभी भारतीयों को जोड़ने का काम करती है।
🎯 आधुनिक हिंदी
आज हिंदी डिजिटल युग में भी अग्रणी है। इंटरनेट पर हिंदी कंटेंट तेजी से बढ़ रहा है।

अनमोल सामग्री

काव्य संग्रह
हिंदी की मधुर कविताओं का संग्रह
कविता 1: हम नन्हें परिंदे
हम नन्हें परिंदे, इस प्यारे जमनाधाम के गीत गाते, चल पड़े हैं निज अभिमान के। अब तो सफलता के शिखरों को छूना है, भरा विश्वास है, अनुशासन उससे भी दूना है। हम नन्हें सुमन, इस प्यारे गुलिस्तां के महक उठे हैं, पाकर भंडार सद्ज्ञान के। भरें हैं भीतर, विविधता के हमारे कोश हैं, इरादे हैं पक्के और मन हमारे निर्दोष हैं। हम नन्हें पुतले, सत्य, निष्ठा, ईमान के गीत गाते, चल पड़े हैं निज अभिमान के। हम बच्चे जमना विद्यापीठ की शान हैं, हुनर भरा है, संस्कारों की भी खान है। हम सुंदर रूप, उस परमपिता भगवान के आशीष लिए, चल पड़े हैं गुरु की छांव में। अब तो विद्यालय को ऐसा गौरव देना है, न रुकें कदम, ऐसा प्रण अब लेना है। हम नन्हें परिंदे, इस प्यारे जमनाधाम के गीत गाते, चल पड़े हैं निज अभिमान के। अब तो सफलता के शिखरों को छूना है, भरा विश्वास है, अनुशासन उससे भी दूना है। — सौरभ सुनेजा
कविता 2: अंतरिक्ष की सैर से क्यूं डरना?
जगमग–जगमग हुए हैं तारे सारे, चले जमीं से हम, नापने चंदा मामा प्यारे। यह धरा, हिमकण, सब है प्रभु की रचना, चल बिटिया, अंतरिक्ष की सैर से क्यूं डरना? अपनी शक्ति अचला पर तुम ने दिखाई, बन बछेंद्री पाल, तुम शिखर भी छू आई। सफर तय तुम्हें अब तारों का है करना बातें हवा से, कदम चांद पर है रखना! यह कल–कल बहते निर्झर, पावन फूलों की टोली, यह नायाब दुनिया, किसी ने रंगों की डिबिया खोली! क्या है चांद पर भी यह सब? ज़रा कदम तो बढ़ा, तिरंगा लेकर, उस दुनिया के ऊंचे पर्वत भी चढ़-आ! इस जगत के, उस जगत के, क्या हैं कहने? क्या धरती, चांद और तारे, सब भाई और बहनें? बिटिया, तुम ही रहस्य का पता लगाओ, जाओ, आकाशगंगा से कोई सुराग लाओ! धरती पर तो हवा भी पेड़ों को नचाती है, जल की धार भी पत्थर–प्रस्तर काट जाती है, सफ़ेद–से चांद पर क्या वायु है, पानी बथेरा है? या, गड्ढों की चादर और बस धूलि–धूसर का डेरा है? जगमग–जगमग हुए हैं तारे सारे, चले जमीं से हम, नापने चंदा मामा प्यारे। यह धरा, हिमकण, सब है प्रभु की रचना, चल बिटिया, अंतरिक्ष की सैर से क्यूं डरना? विज्ञान की ताकत को अपनी ताकत में मिला ले, उठा गठरी, चंदा मामा की तरफ कदम बढ़ा ले। — सौरभ सुनेजा
कविता 3: आओ, दशहरा मनाते हैं
आओ, दशहरा मनाते हैं, दानव दंभ का भीतर बैठा, उसे आज जलाते हैं। आओ, दशहरा मनाते हैं, मोह की बेड़ियां भीतर अकड़ी, उन्हें आज गलाते हैं। आओ, दशहरा मनाते हैं, काम, क्रोध, लोभ असुर बने, इन्हें राम से मिलवाते हैं। मानव मन मिथ्या दुराचारी हावी होता बड़ा व्यभिचारी, आज इन्हें अंजाम तक पहुंचाते हैं, आओ, दशहरा मनाते हैं। रोज़ छली जा रही नारी, पाप है अभी भी जारी, दशरथ नंदन को फिर बुलाते हैं, आओ, दशहरा मनाते हैं। — सौरभ सुनेजा
कविता 4: नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति
अब बोझ न लगेगा बस्ता, हालत करेगा नहीं खस्ता! ऐसी शिक्षा नीति है आई, बदलाव की लहर है लाई! कदम नन्हें–से दौड़े चले आएंगे, स्कूल के घंटे अब नहीं डराएंगे! कौन कहता है पढ़ाई उबाऊ है? किताबी कीड़ा और सब रटाऊ है? पलट देगी पढ़ाने के पुराने ढंग, छिटका देगी दिलचस्पी के रंग! श्यामपट तो कहीं खो जाएगा, सब कुछ 'क्रियात्मक' हो जाएगा! शायद यंत्र भी बच्चों को पढ़ाएंगे, शिक्षक के संगी-साथी हो जाएंगे! कलम-घसीटी कुछ कम हो जाएगी, गतिविधियां ही अहम रोल निभाएंगी! सृजन की डिब्बियां खुल जाएंगी, चुपके से आकाश में घुल जाएंगी! कोई रचेगा कविता, कोई बुनेगा गीत, कोई दौड़ेगा, खेल में मैदान लेगा जीत! अब नहीं होगी अंकों की माया, न होगा सिर पर डंडे का साया! पढ़ाई खेल–सी सरल बन जाएगी, शिक्षा नीति बच्चों को बड़ा लुभाएगी! — सौरभ सुनेजा
कविता 5: चंद्रयान ३ का सफ़र
अंतरिक्ष की सैर पर चला यान हमारा है, करोड़ों लोगों की उम्मीद, इसरो का सहारा है। चांद की सतह का राज़ चुराने, जीवन के सुराग का पता लगाने, पोल खोलेगा चांद के गड्ढों की! और कहीं, हीलियम के अड्डों की! चंदा 'मामा' का अब किसको डर है? बच्चों का तो अब वही दूसरा घर है! विज्ञान की ताकत भी बड़ी अनूठी है, चंदा मामा की कहानी लगती झूठी है! सतीश धवन से उल्टी गिनती, वैज्ञानिक कर रहे प्रभु विनती! यान चांद पर कुछ दिन बिताएगा, खोजकर कोई तो निशान लाएगा! क्या मिलेंगे जल के झरने? क्या सच होंगे कल के सपने? इंसान चांद पर क्या बस पाएगा? या, कोई अभाव स्वप्न डस जाएगा? रॉकेट वाले बाबू हाथ हिलाते हैं, सफ़ल लैंडिंग का समाचार सुनाते हैं। सवा सौ करोड़ दिलों की धड़कन, अब नहीं, नहीं कोई तकनीकी अड़चन! चांद पर तिरंगा फिर लहराएगा, भारत कांति विश्व में फैलाएगा! इसरो की मेहनत रंग तो लाएगी, चांद पर हमारी वजह से दुनिया जाएगी! — सौरभ सुनेजा
कविता 6: टमाटर का नाटक
आज हम सब ने नुक्कड़ नाटक है रचाया, एक बच्चे को प्याज़, दूसरे को टमाटर है बनाया! टमाटर था महंगा, प्याज़ के साथ चली न यारी, टमाटर चढ़ते चार, प्याज़ भर देते टोकरी सारी! हिंदी अध्यापक भीे सब खड़े हैरान, बच्चों की टोली में टमाटर बने भगवान! प्याज़ की व्यथा भी सुनो भाई, जो दूसरों को देता था आंसू, आज उसकी आंख भर आई! नाटक का खलनायक – टमाटर गोल, दिन–दहाड़े आसमान छूते इसके मोल! बच्चे बजाते ताली और थाली, दर्शाते आम आदमी की बदहाली! गरीब जो प्याज़ से रोटी खाता, पीसकर टमाटर की चटनी बनाता, उसकी जेब पर कहर ढाते क्यों हो? अपनी लालिमा से भरमाते क्यों हो? अब तो बंद करो इठलाना! यूं नहीं खून के आंसू रुलाना! क्या भूल गए वे दिन ? तुम क्या हो प्याज़ के बिन? तुम अकेले ही नहीं लगाते तड़का, साथ खड़ा प्याज़, टमाटर पर भड़का! — सौरभ सुनेजा
कविता 7: शारदा मैडम चली बीकानेर
शारदा मैडम चल पड़ी हैं बीकानेर ! शहर यह बीकाजी का अनोखा है, टीलों पर नाचता हवा का झोंका है ! दिन में तपती धरती रे! ऊंट भागते अलमस्त रे! उड़–उड़ जाते धूल में छप्पर, खनक जाते हैं घरों के खप्पर! बीकानेर की बात ही अजब है, यहां सुनहरी रेत ढाती गजब है! शारदा मैडम चल पड़ी हैं बीकानेर ! सलाम ठोकती अपने शहर को, मां के संग बिताती हर पहर को ! तराने छेड़ देती हैं कभी बचपन के, बटन हाथ में पिता के अचकन के ! रेत पर उकरी लकीरें हैं, यादों की बोलती तस्वीरें हैं। कारपेट पर छपा एक एहसास है, बीकानेर मैडम के लिए खास है ! शारदा मैडम चल पड़ी हैं बीकानेर ! शहर यह बीकाजी का अनोखा है, टीलों पर नाचता हवा का झोंका है ! झरोखों से झांकती यादें रे! सरपट भागती मीठी बातें रे! तनकर खड़ी जूनागढ़ की मिनारे, आहें भरती सुंदर ऊंची दीवारें ! बीकानेर के ठाठ बाट निराले हैं, रामपुरिया ने वीर लाल पाले हैं ! — सौरभ सुनेजा
कविता 8: फूलों के रंग
फूलों के रंग बदल रहे हैं, खिलने के ढंग बदल रहे हैं। तितलियों ने छोड़े आशियाने सारे, नभ में लटके मायूस तारे आभा की तलाश कर रहे हैं, फूलों के रंग बदल रहे हैं। घटाओं के अंदाज़ बदल रहे हैं, पावस के कण भी सागरों पर बरस रहे हैं। उल्लास के क्षण भी कुटिया को तरस रहे हैं। फूलों के रंग बदल रहे हैं, खिलने के ढंग बदल रहे हैं। भौंरे अपने दल, तालाब अपनेे तल आज फिर बदल रहे हैं। नगरियों में वक्त बदल रहे हैं, धमनियों में रक्त बदल रहे हैं, आज की सूरत में, कल के ख्वाब पल रहे हैं। — सौरभ सुनेजा
कविता 9: जय की हठ
जय ने आज हठ विचित्र ठानी है – "मां, तुम से अच्छी तो मेरी नानी है दो श्वान हैं उनके घर, काले-काले धमा चौकड़ी मारते, लगते प्यारे-प्यारे ! तुम एक न दिलाती, इतना रोता हूं, दिन जाता है कट, रात अकेले सोता हूं। बड़ा न सही, श्वान मुझे छोटा ही दिला दो सफ़ेद चकते वाला, कनखड़ा, मोटा ही लिवा दो भूरी-नीली आंखों वाला, झब्बर-झब्बर बालों वाला अभी-अभी जन्मा, नहीं किसी का हो पोसा-पाला। मां, श्वान दिला दो – इतना ही कहता हूं, सदा देती हो टाल – हर बार ही सहता हूं।" सुनकर बात जय की, बोल पड़ी मां भी – "बेटा, जानता है तू, जानती हूं मैं भी नहीं पसंद है श्वान, दादा - दादी को, क्या होगा खुश, करके नाराज़ सभी को? सुन, तुझे आज मैं एक बात सिखलाती हूं – परिवार सुखी तो अमावस में भी सवेरा है प्रेम के नीड़ में ही तो हम सब का डेरा है। छोड़ ज़िद अब, बन जा तू थोड़ा सयाना, श्वान से नानी के यहां ही रह-रह मिल आना।" — सौरभ सुनेजा
कविता 10: आज कहीं दूर चलते हैं
चलो, अनजान रास्तों से यारी करते हैं, एक नई मंज़िल का इस्तकबाल करते हैं। चलो, आज कहीं दूर चलते हैं। चाहे पड़े काटना, पत्थर को काटेंगे, वीरान ज़िंदगी में भी खुशियां बाटेंगे, नहीं है अब मायूसी के गड्ढों में गिरना! दस्तूर है गिरकर उठना, और फिर चलना! जहां अपनों का हाथ देता है साथ, जहां ठोकरें भी हमें पढ़ाती हैं पाठ, जहां जादू नई उमंग के चलते हैं, चलो, आज कहीं दूर चलते हैं। जहां नए सवेरे अपनी बाहें खोलते हैं, जहां फूल भी प्यार की बोली बोलते हैं, जहां घड़े भी करुणा के जल से भरते हैं, चलो, आज कहीं दूर चलते हैं। चलो, एक सफ़र मुस्कुराकर तय करते हैं, जीवन के गीत में विश्वास की लय भरते हैं, चलो, आज कहीं दूर चलते हैं। — सौरभ सुनेजा
कविता 11: चलो, सपनों को सच करें
चलो, सपनों को सच करें, अब हार न मानें, मेहनत की राह पर चलें, रुकना न जानें। पुस्तक है साथी, कलम है हथियार, ज्ञान ही देगा तुम्हें, श्रेष्ठ आचार-विचार। समय का हर पल अनमोल खजाना है, आज जो बोओगे, वही काटते जाना है। गिरो तो उठो, थको तो भी बढ़ो, संघर्ष की आँधी में, दीपक बन जलो। सपने सच हो जाएँगे, बस रुकना नहीं है। रास्ते की किसी बाधा के समक्ष झुकना नहीं है। — आजाद सिंह चौहान (हिंदी अध्यापक)
कविता 12: सपनों को पंख लगाओ
सपनों को पंख लगाओ, संकट से मत घबराओ, मेहनत का दीप जलाकर, अंधियारा दूर भगाओ। हर सीढ़ी है मुश्किल, मगर चढ़ते जाना है ज्ञान के पथ पर सदैव, आगे बढ़ते जाना है। जो ठान लिया दिल में, वो पाना है हमको उत्साह और उमंग से, हराना है गम को। ज्ञान है हथियार, जो बदलता है जीवन को, लक्ष्य प्राप्ति हेतु, अर्पण कर दो अपने तन-मन को। आज जो मेहनत करोगे, कल जग तुमको मानेगा, अपने पिता के नहीं, स्वयं अपने नाम से जानेगा। तो उठो, चलो, बढ़ो और मंजिल पाने तक चलो, कोटि-कोटि संकट होने पर भी, अपने लक्ष्य से न टलो। — आजाद सिंह चौहान (हिंदी अध्यापक)
लघु कथाएं (बच्चों द्वारा)
शिक्षाप्रद व प्रेरणादायक कहानियां

यहां प्रस्तुत हैं हमारे नन्हे साहित्यकारों की कलम से निकली अनमोल हिंदी कहानियां।

रचनात्मक लेखन की चाबी
लेखन कला के गुर और तकनीकें

हिंदी में रचनात्मक लेखन की कला सीखने के लिए यहाँ विशेष तकनीकें और सुझाव प्रस्तुत किए गए हैं।

हिंदी पखवाड़ा - कार्यक्रम सूची

13 सितम्बर 2025, शनिवार
कक्षा गतिविधि स्थान समय
6 से 10 हिंदी पखवाड़ा शुभारंभ समारोह प्रार्थना सभागार सुबह 7:30 से 8:45
3 से 10 पोस्टर निर्माण एवं नारा लेखन प्रार्थना सभागार कालांश 7 और 8
15 सितम्बर 2025, सोमवार
कक्षा गतिविधि स्थान समय
1 और 2 सुलेख प्रतियोगिता कक्षा कक्ष कालांश 1
1 और 2 कविता वाचन प्रतियोगिता प्रार्थना सभागार कालांश 1, 2, 3
1 और 2 एकल अभिनय प्रतियोगिता प्रार्थना सभागार कालांश 1, 2, 3
16 सितम्बर 2025, मंगलवार
कक्षा गतिविधि स्थान समय
3 सुलेख प्रतियोगिता कक्षा कक्ष कालांश 1
3 कविता वाचन, एकल अभिनय, छंद गायन प्रार्थना सभागार कालांश 1, 2, 3
17 सितम्बर 2025, बुधवार
कक्षा गतिविधि स्थान समय
1 और 2 समापन एवं सम्मान समारोह प्रार्थना सभागार कालांश 2, 3, 4
4 सुलेख प्रतियोगिता कक्षा कक्ष कालांश 5
4 कविता वाचन, भाषण, एकल अभिनय, छंद गायन प्रार्थना सभागार कालांश 5, 6, 7
18 सितम्बर 2025, गुरुवार
कक्षा गतिविधि
3 से 10 हिंदी ओलंपियाड परीक्षा का आयोजन
19 सितम्बर 2025, शुक्रवार
कक्षा गतिविधि स्थान समय
5 सुलेख प्रतियोगिता कक्षा कक्ष कालांश 1
5 कविता वाचन प्रार्थना सभागार कालांश 1
5 एकल अभिनय प्रार्थना सभागार कालांश 2
5 भाषण एवं गायन प्रार्थना सभागार कालांश 3
5 दोहा प्रतियोगिता प्रार्थना सभागार कालांश 4
20 सितम्बर 2025, शनिवार
कक्षा गतिविधि स्थान समय
6 अनुच्छेद लेखन कक्षा कक्ष कालांश 1
6 एकल अभिनय प्रार्थना सभागार कालांश 1
6 वाद विवाद प्रार्थना सभागार कालांश 2
6 भाषण प्रार्थना सभागार कालांश 3
6 कविता वाचन/दोहा गायन प्रार्थना सभागार कालांश 4
6 प्रश्नोत्तरी प्रार्थना सभागार कालांश 3
23 सितम्बर 2025, मंगलवार
कक्षा गतिविधि स्थान समय
7 अनुच्छेद लेखन कक्षा कक्ष कालांश 1
7 एकल अभिनय प्रार्थना सभागार कालांश 1
7 वाद विवाद प्रार्थना सभागार कालांश 2
7 भाषण प्रार्थना सभागार कालांश 3
7 प्रश्नोत्तरी प्रार्थना सभागार कालांश 3
7 कविता वाचन/दोहा गायन प्रार्थना सभागार कालांश 4
3 से 5 समापन एवं सम्मान समारोह प्रार्थना सभागार कालांश 5, 6
24 सितम्बर 2025, बुधवार
कक्षा गतिविधि स्थान समय
8 अनुच्छेद लेखन कक्षा कक्ष कालांश 1
8 कविता वाचन एवं भाषण प्रार्थना सभागार कालांश 1
8 वाद विवाद प्रार्थना सभागार कालांश 2
8 प्रश्नोत्तरी प्रार्थना सभागार कालांश 3
8 दोहा/चौपाई गायन एवं एकल अभिनय प्रार्थना सभागार कालांश 4
25 सितम्बर 2025, गुरुवार
कक्षा गतिविधि स्थान समय
9 अनुच्छेद लेखन कक्षा कक्ष कालांश 1
9 अभिनय प्रतियोगिता प्रार्थना सभागार कालांश 1
9 वाद विवाद प्रतियोगिता प्रार्थना सभागार कालांश 2, 3
26 सितम्बर 2025, शुक्रवार
कक्षा गतिविधि स्थान समय
10 अनुच्छेद लेखन प्रतियोगिता कक्षा कक्ष कालांश 1
10 अभिनय प्रतियोगिता प्रार्थना सभागार कालांश 1, 2
27 सितम्बर 2025, शनिवार
कक्षा गतिविधि स्थान समय
6 से 10 समापन एवं सम्मान समारोह प्रार्थना सभागार कालांश 0, 1, 2

आभार व्यक्त शिक्षकगण

हिंदी पखवाड़े के सफल आयोजन में निम्नलिखित प्रभारियों व शिक्षकों का बहुमूल्य योगदान रहा। विद्यालय परिवार आपका हार्दिक आभार व्यक्त करता है।

श्रीमती मंजू बाला
श्रीमती सविता देवी
श्रीमती रश्मि अधिकारी
श्रीमान सी.एस. शर्मा
श्रीमती अभिलाषा जोशी
श्रीमती रेखा पारीक
श्रीमान सौरभ सुनेजा
कुमारी काजल झा
श्रीमती ऋतु दास
श्रीमान आजाद सिंह चौहान
श्रीमती योगेश्वरी शर्मा
श्रीमती सरोज जांगिड़
श्रीमती सुमित्रा चौधरी
श्रीमान अनूप शुक्ला
श्रीमती ज्योति शर्मा
श्रीमती अंजू सैनी
श्रीमती अंजू कुमारी
श्रीमती सीता कुमावत